Search results
Sher-o-Shayari 49. kabhī jo ḳhvāb thā vo pā liyā hai. magar jo kho ga.ī vo chiiz kyā thī. kabhi jo KHwab tha wo pa liya hai. magar jo kho gai wo chiz kya thi. jidhar jaate haiñ sab jaanā udhar achchhā nahīñ lagtā. mujhe pāmāl rastoñ kā safar achchhā nahīñ lagtā. jidhar jate hain sab jaana udhar achchha nahin lagta.
- Sher 48
Javed Akhtar Shayari available in Hindi, Urdu and Roman...
- Top 20 Shayari 20
List of Top 20 famous Urdu Sher of Javed Akhtar selected by...
- Ghazals of Javed Akhtar
Javed Akhtar Ghazals available in Hindi, Urdu and Roman...
- Nazms of Javed Akhtar
Javed Akhtar Nazms available in Hindi, Urdu and Roman...
- Sher 48
जावेद अख़्तर की समस्त शायरी, ग़ज़ल, नज़्म और अन्य विधाओं का लेखन तथा ई-पुस्तकें यहाँ उपलब्ध हैं, उनकी ऑडियो-विडियो से भी लाभान्वित हो सकते हैं.
- तरकश – जावेद अख़्तर, Tarkash – Javed Akhtar
- दोराहा
- लावा – जावेद अख़्तर, Lava – Javed Akhtar
1. मेरा आँगन, मेरा पेड़
मेरा आँगन कितना कुशादा कितना बड़ा था जिसमें मेरे सारे खेल समा जाते थे और आँगन के आगे था वह पेड़ कि जो मुझसे काफ़ी ऊँचा था लेकिन मुझको इसका यकीं था जब मैं बड़ा हो जाऊँगा इस पेड़ की फुनगी भी छू लूँगा बरसों बाद मैं घर लौटा हूँ देख रहा हूँ ये आँगन कितना छोटा है पेड़ मगर पहले से भी थोड़ा ऊँचा है
2. हमारे शौक़ की ये इन्तहा थी
हमारे शौक़ की ये इन्तहा थी क़दम रक्खा कि मंज़िल रास्ता थी बिछड़ के डार से बन-बन फिरा वो हिरन को अपनी कस्तूरी सज़ा थी कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था मिरे अंजाम की वो इब्तदा थी मुहब्बत मर गई मुझको भी ग़म है मिरे अच्छे दिनों की आशना थी जिसे छू लूँ मैं वो हो जाये सोना तुझे देखा तो जाना बद्दुआ थी मरीज़े-ख़्वाब को तो अब शफ़ा है मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी (इन्तहा=हद, इब्तदा=शुरुआत, आशना=परिचित, शफ़ा=रोग से मुक्ति)
3. वो कमरा याद आता है
मैं जब भी ज़िंदगी की चिलचिलाती धूप में तप कर मैं जब भी दूसरों के और अपने झूट से थक कर मैं सब से लड़ के ख़ुद से हार के जब भी उस एक कमरे में जाता था वो हल्के और गहरे कत्थई रंगों का इक कमरा वो बेहद मेहरबाँ कमरा जो अपनी नर्म मुट्ठी में मुझे ऐसे छुपा लेता था जैसे कोई माँ बच्चे को आँचल में छुपा ले प्यार से डाँटे ये क्या आदत है जलती दोपहर में मारे मारे घूमते हो तुम वो कमरा याद आता है दबीज़ और ख़ासा भारी कुछ ज़रा मुश्किल से खुलने वाला वो शीशम का दरवाज़ा कि जैसे कोई अक्खड़ बाप अपने खुरदुरे सीने में शफ...
(अपनी बेटी ज़ोया के नाम) ये जीवन इक राह नहीं इक दोराहा है पहला रस्ता बहुत सरल है इसमें कोई मोड़ नहीं है ये रस्ता इस दुनिया से बेजोड़ नहीं है इस रस्ते पर मिलते हैं रिश्तों के बंधन इस रस्ते पर चलनेवाले कहने को सब सुख पाते हैं लेकिन टुकड़े टुकड़े होकर सब रिश्तों में बँट जाते हैं अपने पल्ले कुछ नहीं बचता बचती है बेनाम सी उलझन बचता है साँसों का ईंधन जिस...
1. ज़बान
कोई ख़याल और कोई भी जज़्बा कोई भी शय हो जाने उसको पहले-पहल आवाज़ मिली थी या उसकी तस्वीर बनी थी सोच रहा हूँ कोई भी आवाज़ लकीरों में जो ढली तो कैसे ढली थी सोच रहा हूँ ये जो इक आवाज़ अलिफ़ है सीधी लकीर में ये आिख़र किसने भर दी थी क्यों सबने ये मान लिया था सामने मेरी मेज़ पे इक जो फल रक्खा है इसको सेब ही क्यों कहते हैं सेब तो इक आवाज़ है इस आवाज़ का इस फल से जो अनोखा रिश्ता बना है कैसे बना था और ये टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें जिनको हर्फ़ कहा जाता है ये आवाज़ों की तस्वीरें कैसे बनी थीं आवाज़ें तस्वीर बनीं या तस्वीरें आवा...
2. जिधर जाते हैं सब, जाना उधर अच्छा नहीं लगता
जिधर जाते हैं सब, जाना उधर अच्छा नहीं लगता मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना, हामी भर लेना बहुत हैं फ़ायदे इसमें मगर अच्छा नहीं लगता मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है किसी का भी हो सर, क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता बुलंदी पर इन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती ये वो शाखें हैं जिनको अब शजर अच्छा नहीं लगता ये क्यों बाक़ी रहे आतिश-ज़नो, ये भी जला डालो कि सब बेघर हों और मेरा हो घर, अच्छा नहीं लगता
3. कभी-कभी मैं ये सोचता हूँ कि मुझको तेरी तलाश क्यों है
कभी-कभी मैं ये सोचता हूँ कि मुझको तेरी तलाश क्यों है कि जब हैं सारे ही तार टूटे तो साज़ में इरतेआश क्यों है कोई अगर पूछता ये हमसे, बताते हम गर तो क्या बताते भला हो सब का कि ये न पूछा कि दिल पे ऐसी ख़राश क्यों है उठाके हाथों से तुमने छोड़ा, चलो न दानिस्ता तुमने तोड़ा अब उल्टा हमसे तो ये न पूछो कि शीशा ये पाश-पाश क्यों है अजब दोराहे पे ज़िंदगी है कभी हवस दिल को खींचती है कभी ये शर्मिंदगी है दिल में कि इतनी फ़िक्रे-मआश क्यों है न फ़िक्र कोई न जुस्तुजू है, न ख्वाब कोई न आरज़ू है ये शख्स तो कब का मर चुका...
Jun 25, 2018 · Javed Akhtar Poetry 1. “हर ख़ुशी में कोई कमी सी है।”. Javed Akhtar Poetry 2. “अपने होने पर मुझको यकीन आ गया”. Javed Akhtar ki Kavita 3. “तुमको देखा तो ये ख़याल आया”. ज़िन्दगी धूप ...
जावेद अख़्तर की ग़ज़लें. 36.9K. Favorite. जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता. जीना मुश्किल है कि आसान ज़रा देख तो लो. याद उसे भी एक अधूरा ...
कुछ प्रमुख कृतियाँ. तरकश, लावा. विविध. जाँ निसार अख़्तर के पुत्र, शायर होने के साथ-साथ जावेद अख़्तर हिन्दी सिनेमा में पटकथा लेखक के ...
जावेद अख्तर कवि और हिन्दी फिल्मों के गीतकार और पटकथा लेखक हैं। वह सीता और गीता, ज़ंजीर, दीवार और शोले की कहानी, पटकथा और संवाद लिखने के लिये प्रसिद्ध है ...